रोज शाम की तरह, आज भी मिस्टर त्रिपाठी, सोसायटी के नुक्कड़ में बनी, चाय की दुकान पर पहुंचे। साथ में उनके पड़ोसी दोस्त भी थे। वो अक्सर यहां चाय पीने आते, और उन सभी में, दुनियाभर की बातें होती। आज इसी गपछप में, सब एक-दूसरे की कमियां गिना रहे थे। बाकी सभी ने तो, मजाक में लिया, लेकिन उनमें से एक आदमी बुरा मान गया। गुस्सा करने लगा। तब, उनमें से एक ने कहा- काफी समय की बात है। एक आदमी, दूर कुएं पर पानी लेने जाता था। 2 घड़े ले जाता, जिन्हें वो डंडे में बाँधकर अपने कंधे के दोनों तरफ लटका लेता। एक घड़े में, छेद था। इसलिए, सिर्फ डेढ़ घड़ा पानी ही घर पहुंचता। उस आदमी से माफी मांगते हुए, वो घड़ा कहता है- मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था, उसका आधा ही पहुंचा पाता हूँ, मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है।
किसान कहने लगा- पूरे रास्ते सिर्फ तुम्हारी तरफ सुंदर फूल लगे हैं। मुझे तुम्हारी इस कमी का, हमेशा से पता था, इसलिए मैंने तुम्हारी ओर वाले रास्ते पर फूलों के बीज बो दिए थे। तुम रोज़ थोडा-थोडा कर, उन्हें सींच रहे थे। आज तुम्हारी वजह से, वो रास्ता सुंदर है। परफेक्ट कोई नहीं होता, हम सभी के अंदर, कोई न कोई कमी जरूर है। इस आदमी की तरह, कमियों को स्वीकार करें। जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जाएगा।